जीबन आपने आप में सम्पूर्ण है, ईसे कोई ब्याख्या या बीबरण की आबश्यकता नही है, जीबन को अनुभब करना अति अबश्यक है, ये सभी को स्वयं में समेटा हुआ है फिर भी सबसे भिन्न और सबसे ऊपर है, ये सभिको एक दुसरे से जोड़ता है फिर भी भौतिक संसार में भिन्न भिन्न स्वरुप में स्तिथ है ।
आपने बहुमूल्य समय और उर्जा का प्रोयोग स्वयं और जीबन की उन्नति केलिए प्रोयाग करते रहना चाहिए ।
जीबन सूर्य किरण के समान है, अमृत के समान नहीं…, क्यों की एक बिषैला बूंद सम्पूर्ण अमृत को बिषैला बना सकती है, परन्तु सूर्य किरण कभी भी आपनी अस्थित्व नहीं खोती है , भले ही वह कीचड़ को ही क्यूँ न छू ले ।
जिस प्रकार एक बिषैले बीज से कभि भी ऐसे एक वृक्ष नहीं प्राप्त किआ जा सकता जो की आम की प्रचुर मिठास से उभर रहा हो, उसी प्रकार भ्रम और भ्रान्ति की बीज से जीबन की मिठास प्राप्त नहीं किआ जा सकता ।
जिस प्रकार आप अपनी जीबन को अनुभव करते हैं वही आप की जीबन की परिभाषा बन जाती है ।
खुले ह्रदय से स्वयं की हार को स्वीकार करना, आपने आप में ही एक बड़ी जीत है ।
शांति से भरी हुई जीबन के साथ मृत्यु भी अति सुन्दर होती है, जबकि, भय से भरी हुई जीबन के साथ जीबित हो कर भी जीबन मृत्यु समान होती है ।
यदि आप ब्यबहारिक रूप से दूसरों को दोष देना पसंद करते हैं, तो फिर आप समाधान के कारण कभी नहीं बन सकते ।
जब आप स्पस्ट रूप से जानते हैं की आप क्या कर रहे हैं, एसी जीबन की स्पष्टता के साथ हार भी जीबन की अस्पष्टता से भरी हुई सफलता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है, जब की जीबन की स्पष्टता के साथ हार भी जीत ही होती है ।
स्वयं की भूल को स्विकार करने की साहस ही हमें स्वयं की जीबन को उन्नत बनाने की स्पष्टता प्रदान करती है ।
साहस और त्याग प्रेम की गर्भ से जन्म लेते है ।
बिनाश अहंकार से जन्म लेता है, और अहंकार जीबन की सत्यता की अज्ञानता से जन्म लेता है।
जीबन में किसि भी परिस्थिति को दो रूप में देखा जा सकता है या तो संकटपूर्ण रूप में या फिर एक अबसरपूर्ण और सुयोगपूर्ण के रूप में ।
यदि आप इस लिए आँसू बहा रहे हे कि आप कि जीबन में बाकि सब से ज्यादा बड़ा संकट स्थित है , तो आप को ये स्मरण रखना अति आबश्यक है कि बड़े से बड़े संकट आप की जीबन को बाकि सब से कई अधिक महत्वपूर्ण बना देते है ।
जब आप सम्पूर्ण रूप से अज्ञान की अंधकार में होते हो, एसी समय में आप के भीतर से एक अद्भुत ज्ञान एबं रचनात्मकता का सूर्य उदय हो सकता है, जिसकी कल्पना करना असम्भब है ।
वो करें जो आबश्यक है, ना की वो जो आप चाहते है ।
यदि आप आपने ही जीबन में संकट खडे करना चाहते है तो आपना ध्यान दूसरों की कर्मो पर केन्द्रित करें, परन्तु यदि आप समाधान प्राप्त करना चाहते हैं तो ध्यान स्वयं की कर्मो पर केन्द्रित करें ।
जीबन का सम्पूर्ण आनन्द आपनी मन की इच्छाओं को पूर्ति करते हुए प्राप्त नहीं की जा सकती, परन्तु जीबन का सम्पूर्ण आनन्द मन की इच्छाओं से मुक्त हो कर ही प्राप्त की जा सकती है ।
कर्म ही जीबन की सुन्दरता का मुख्य कारण है ।
जितने ही अधिक आप जीबन जीते चले जाते है उतना ही अधिक आपको अनुभब होता चला जाता है की आप कितने अज्ञानी और अहंकारी थे ।
साहास, प्रेम, धेर्य, सहनशिलता, क्षमा येहि वो गुण हे जो आप कि जीबन को सही में उन्नत बनाति है । कब किसकि प्रोयाग करनि आबश्यक हे आप स्वयं आपनि बुद्धि का प्रोयोग कर के निश्चित करसकते हे।
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